Saturday, March 5, 2011

'भ्रष्टाचार' देश की सबसे बड़ी समस्या

देश की सबसे बड़ी समस्या क्या है? इस प्रश्न पर देशके हर वर्ग के भिन्न-भिन्न होते हैं कोई गरीबी को देश कि समस्या बताता है, तो कोई बेरोजगारी को, तो कोई भूखमरी को
मगर मेरी बात करें तो मेरे विचार से सबसे बड़ी समस्या वह होती है, जिसे लोग समस्या मानना बन्द कर देते हैं और उसे अपने जीवन का एक हिस्सा मान लेते हैं। जैसे खाना खाना, साँस लेना, या फिर सुभाह उठ कर ऑफिस जाना. या फिर कहें तो कोई ऐसे बात जिसके गलत होने का एहसास तो लोगों को है पर उसे सही मानने कि लिए हमने अपने दिमाग को समझा लिया और यह समस्या फिर समस्या ना होकर नियम, कायदा, कानून बन जाता है
और अगर इस प्रकार देखा जाये तो 'भ्रष्टाचार' देश की सबसे बड़ी समस्या है. यह एक ऐसी समस्या है, जिसे हमने न चाहते हुये भी शासन-प्रणाली का और जन-जीवन का एक जरुरी हिस्सा मान लिया है. और आज अब हालात ये हो गए हैं कि लोगों ने इसे समस्या समझना ही बंद कर दिया है। किसी काम को करने के लिए रिश्वत लेना-देना अब नौकरशाही के अनेक नियमों में से एक नियम हो गया है। अब लोग रिश्वत लेने-देने को बुरा नहीं समझते बल्कि जो इस बात का विरोध करता है, उसे बेवकूफ़ और अति आदर्शवादी मान लेते हैं॥ कुछ साल पहले प्रसासनिक सेवा अथवा किसी बड़े पद पर में जाने के इच्छुक लोगों के आदर्श होते थे कि वे देश की बेहतरी के लिये कुछ करेंगे, रिश्वत कभी नहीं लेंगे और अन्य ग़लत तरीकों से पैसे नहीं कमायेंगे।
मगर आज यह आदर्शवादी वर्ग तथा समाज के युवा वर्ग के लिए आदर्श समझे जाने वाले भी " अरे यार आजकल तो सब कुछ चलता है" के अन्दाज़ में बोलने लगे हैं। और इससे ऐसा लगता है कि जैसे सभी लोगों ने अब यह मान लिया है कि अब सरकारी नौकरी करने लोग जाते ही इसीलिये हैं कि कुछ "ऊपरी कमाई" हो सके. आप सोच रहे होंगे मै आज ये बात क्यूँ कर रहा हूँ। इसका एक रिशन है। कल मै जिले के एक बड़े अधिकारी से मिला। जानते हो वह महाशय अपने कनिष्ठ से किसी कम को जल्दी करने के लिए पैसे देकर करने कि सलाह दे रहे थे।
भ्रष्टाचार किस प्रकार देश को घुन की तरह खाये जा रहा है उसका सबसे बड़ा उदाहरण तो हमारे विधायक और सांसद हैं। सभी जानते हैं कि उनको अपने कार्य के लिये कितना वेतन और भत्ता मिलता है? परन्तु देखते ही देखते ही देखते उनके महल खड़े हो जाते हैं, करोड़ों की अचल सम्पत्ति बन जाती है और अच्छा-खासा बैंक बैलेंस जमा हो जाता है. और आश्चर्य की बात तो यह है कि लोग इस विषय में ऐसे बात करते हैं कि जैसे यह एक आम बात हो. जिस जनता ने उनको चुनकर संसद या विधानसभा तक पहुँचाया है, वह तक प्रश्न नहीं करती कि उनके पास इतना धन आया कहाँ से? लोग यह भी नहीं सोचते कि जो पैसा आम जनता से कर के रूप में वसूला जाता है, देश की अवसंरचना के विकास के लिये, उसका न जाने कितना बड़ा हिस्सा तो इन लोक प्रतिनिधियों के जेब में चला जाता है.
दूसरी ओर सरकारी कर्मचारी हैं, जो बिना घूस लिये कोई काम ही नहीं करते. एक ग़रीब आदमी अपना राशनकार्ड भी बनवाने जाता है, तो इन बाबुओं को घूस खिलाना ही पड़ता है. और वह गरीब बेचारा यह सब करता इसलिए है कि यदि वह रिश्वत नहीं देगा तो उससे अधिक पैसा तो दफ़्तर के चक्कर काटने में ही खर्च हो जायेगा. जब उस बाबू से पूछो तो कहेगा कि हमें ऊपर तक पहुँचाना पड़ता है. हद तो तब हो जाती है, जब अधिकारी तो एक तरफ़, कई राज्यों में मुख्यमन्त्रियों तक का प्रत्येक विभाग से निश्चित कोटा होता है, जो क्रमशः नीचे के कर्मचारियों और जनता से वसूला जाता है. यह अब सिस्टम का हिस्सा बन गया है. इस पर किसी को कोई ऐतराज़ ही नहीं होता. लोग यह सोचकर पैसे लेकर जाते हैं कि बिना पैसे के तो काम होना ही नहीं है.
भ्रष्टाचार के इस रोग के कारण हमारे देश का कितना नुकसान हो रहा है, इसका अनुमान लगाना भी मुश्किल है. पर इतना तो साफ़ दिखता है कि सरकार द्वारा चलाई गयी अनेक योजनाओं का लाभ लक्षित समूह तक नहीं पहुँच पाता है. इसके लिये सरकारी मशीनरी के साथ ही साथ जनता भी दोषी है. सूचना के अधिकार का कानून बनने के बाद कुछ संवेदनशील लोग भ्रष्टाचार के विरुद्ध सामने आये हैं, जिससे पहले स्थिति सुधरी है. पर कितने प्रतिशत? यह कहना मुश्किल है. जिस देश में लोगों द्वारा चुने गये प्रतिनिधि ही लोगों का पैसा खाने के लिये तैयार बैठे हों, वहाँ इससे अधिक सुधार कानून द्वारा नहीं हो सकता है.
भ्रष्टाचार से लड़ने के लिये जनता को और अधिक जागरुक बनना होगा और शुरुआत खुद से करनी होगी. बात-बात में सरकार को कोसने से काम नहीं चलेगा. जब हम खुद रिश्वत देने को तैयार रहेंगे तो सरकार क्या कर लेगी? हमें रिश्वत देना बन्द करना होगा, चुनाव के समय अधिक सावधानी बरतनी होगी और समझदारी से काम लेना होगा. हमें हर स्तर पर ग़लत बात का विरोध करना होगा. जब सिविल सोसायटी की जागरुकता से जेसिका लाल और रुचिका जैसी लड़कियों को न्याय मिल सकता है, तो भ्रष्टाचार को अपने देश की शासन-प्रणाली से उखाड़ फेंकना कौन सी बड़ी बात है?हमारे पास मतदान का अधिकार और सूचना के अधिकार जैसे कानून के रूप में हथियार पहले से ही हैं ज़रूरत है तो उस हिम्मत की जिससे हम भ्रष्टाचार रूपी दानव से लड़ सकें.

Wednesday, February 9, 2011

क्यूँकि प्यार तो बस प्यार होता है..

मोहब्बत एक एह्सशों कि पवन कि कहानी है।
कभी कबीरा दीवाना था कभी मीरा दीवानी हैं।


दिल तथा मोहब्बत की परिभाषा को सरोबर करती ये पंक्तियाँ वास्तव में कुछ ना कहते हुए भी बहुत कुछ कह जाती है। सचमुच प्यार एक ऐसा ही खूबसूरत एहसास है जो सचमुच एक इंसान की जिंदगी बदल देता है। जब किसी को प्यार हो जाता है। क्यूँ कोई पहली ही नज़र मै मन को भा जाता है। क्यूँ उसके पास होने भर के एह्सश जीवन मै खुशियों कि बरसात होने लगती है। जी हाँ शायद इसी को प्यार कहते हैं।
प्यार का यह एहसास इंसान की जिंदगी को खुशियों से सरोबार कर देता है। ऐसा लगता है मानो चारों तरफ फूलों की बहार आ गई है। काँटों से लदे उस पेड़-पौधे पर बढ़ती पत्तियों के साथ प्यार का एहसास एक खिले हुए फूल ‍की तरह दोनों जिंदगियों को अपनी प्यार भरी बारिश से तरबतर कर देती है।

यह जरूरी नहीं है कि आप प्यार का इजहार या प्यार की उस बारिश में एक दिन यानी सिर्फ वेलेंटाइन डे की दिन ही नहाएँ। उसके लिए तो जिंदगी की सारी रातें, सारे दिन, चौबीस घंटे और 365 दिन भी कम होते है। अगर वास्तव में आप किसी को प्यार करते हैं तो हर इंसान के जीवन का हर दिन वेलेंटाइन दिन से कम नहीं होता। अगर वह उसे सही मायने में जिए तो

वेलेंटाइन डे की इस फेहरिश्त में.... सभी शामिल हैं, छोटे-बड़े, भाई-बहन, सास-बहू, पति-पत्नी, प्रेमी-प्रेमिका हो या फिर ऑफिस में साथ काम करने वाले वे ‍कलिग्स चाहे वे गर्ल हो या बॉय हो या फिर हर कोई वह शख्स जो प्यार की परिभाषा सही मायने में जानता हो। वो सब इस वेलेंटाइन डे को मनाने के सही मायने में हकदार हैं।

ऐसा नहीं है इस दुनिया में सिर्फ चारों तरफ प्यार ही प्यार हो सकता है उसमें लड़ाई-झगड़े, सोच का बदलाव, झूठ-सच की राजनीति सब कुछ जायज है। लेकिन फिर भी प्यार यही कहता है कि प्रेम का अर्थ सिर्फ प्रेम ही होना चाहिए। फिर उसमें भले ही कितनी ही उलझनें, कितनी ही तकलीफें, कितने दु:ख और कितने ही सुख हो फिर सब कुछ वैसा ही चलता रहना चाहिए। उसमें कभी भी‍ ऊँच-नीच का भेदभाव नहीं होना चाहिए। जब आप दुनिया की हर उस चीज को अपने ही नजरिये से देख पाएँगे।

प्यार को प्यार से और दु:ख, तकलीफ, उलझनों के बी‍च फँसी इस मझँधार रूपी जीवन से जब आप प्यार से जीतोगे तब ही आप प्यार की उस सच्ची पराकाष्ठा को समझ पाएँगे और तभी आपका हर दिन, हर रात वेलेंटाइन की तरह होगी। तब आपको किसी एक खास दिन का नहीं बल्कि तब आपको साल के 365 दिन भी कम पड़ेंगे असली वेलेंटाइन डे का मजा उठाने के लिए।

तो आइए हम इस मुश्किल भरे जीवन से भी एक ऐसी राह निकाल लें जिससे हमें 14 फरवरी का इंतजार ना करना पड़े और हमारा हर दिन ही वेलेंटाइन-सा महसूस हो।



Anuj Sharma
The Pioneer'Hindi'
+91-9897780173

Thursday, August 26, 2010

जनप्रतिनिधियों का ‘भुक्खडऩाच’

भारत एक ऐसा देश जिसका नाम विश्व मै सिर्फ इस लिए लिया जाता है कि भारत अनेकता में एकता का देश है। यह बात पूरी देश कि जनता को तब और बेहतर ढ़ंग से तब समझ में आई, जब संसद में बात बात पर कुर्सी फेंकने वाले तथा देश हित कि बातों पर अलग-अलग राग अलापने वाले सांसदों को एक स्वर में एक ही मसले पर एक साथ चिल्लाते देखा। और हो भी क्यूँ ना वह मसला ही ऐसा था, मामला था स्वयं के वेतन-भत्तों की बढ़ोत्तरी का। हमारी सरकार ने साड़ी हदों को पर करते हुए सांसदों की वेतन बढ़ोत्तरी का मामला उस समय उठाया, जब आधा देश सूखे और आधा बाढ़ से त्राहिमाम कर रहा था। तो देश का हर नागरिक महगाईं से त्रस्त है॥
वहीँ दूसरी और देश के एक गांव के करीब 2000 किसान इच्छा मृत्यु की इजाजत मांग रहे थे, वहीं 6600 मीट्रिक टन अनाज गोदाम के अभाव में सड़ रहा था। ऐसी विकट स्थिति में देश की करीब सवा करोड़ आबादी की चिन्ता छोड़ सांसद अपने वेतन-भत्तों के लिए कोहराम मचाए हुए थे।

आखिरकार, संसद को अपनी ससुराल समझने वाले देश के इन माननीयों की जिद को पूरी करते हुए केंद्र सरकार ने हमारे माननीय सांसदों का वेतन 16 हजार से बढ़ाकर 50 हजार कर दिया गया। वेतन के अलावा सांसदों को मिलने वाले भत्तों और पेंशन में भी बढोतरी कर दी गई है। रिटायर होने के बाद भी उन्हें किसी तरह की परेशानी ना हो इसका भी पूरा इंतजाम कर दिया गया है. सांसदों की पेंशन को भी 8 हजार से बढाकर 20 हजार कर दिया गया है।
देश को चलने वाले जनता के द्वारा चुने गए सांसदों का दैनिक भत्ता एक हजार रूपए से बढाकर 2 हजार रूपए कर दिया गया है। जो की एक आम भारतीय की मासिक आमदनी के बराबर है। सांसदों को प्रतिमाह मिलने वाले 20,000 रुपए संसदीय क्षेत्र भत्ता और 20,000 रुपए कार्यालय भत्तों को दोगुना भी किया गया था.
देश की जनता पर बेशक महगाई डायन का पहरा कसता जा रहा हो लेकिन सांसदों को आने-जाने में मंहगाई का असर महसूस न हो, इसके लिए यात्रा भत्ता एक लाख रूपए से बढ़ाकर 4 लाख रूपए सालाना कर दिया गया है। इसके साथ मिलने की लिस्ट बहुत लम्बी है, लेकिन इतना मिलने के बाद भी देश की जनता की समस्याओं को ताक पर रखने वालेसांसद संतुष्ट नजर नहीं आ रहे हैं और अपनी गरीबी का रोना रो रहे हैं।

आंकड़ों के अनुसार, सांसदों में 315 करोड़पति हैं और उनमें से सबसे ज्यादा 146 कांग्रेस के हैं। ज्ञान, चरित्र, एकता वाली भाजपा के 59 सांसद करोड़पति हैं। समाजवादी पार्टी के 14 सांसद करोड़ का आंकड़ा पार कर चुके हैं। दलित और गरीबों की पार्टी कही जाने वाली बहुजन समाज पार्टी के 13 सांसद करोड़पति हैं। द्रविड़ मुनेत्र कडगम के सभी 13 सांसद करोड़पति हैं। कांग्रेस में प्रति सांसद औसत संपत्ति छह करोड़ है, जबकि भाजपा में साढ़े तीन करोड़ है। देश के सारे सांसदों को मिला लिया जाए, तो कुछ को छोड़ कर सबके पास कम से कम साढ़े चार करोड़ रुपए की नकदी या संपत्तियां तो हैं ही। यह जानकारी किसी जासूस ने नहीं निकाली, अपितु खुद सांसदों ने चुनाव आयोग के नियमों के अनुसार इस संपत्ति का खुलासा किया है।
सरकार द्वारा गठित सेन गुप्ता समिति के अनुसार, देश में 78 प्रतिशत लोग दिन भर में बीस रुपए से भी कम में गुजारा करते हैं। यूएनडीपी की एक रिपोर्ट के अनसार, देश के आठ राज्य ऐसे हैं, जहां 42 करोड़ लोग गरीबी रेखा से नीचे हैं। भारत के बारे मै विश्व बैंक की रिपोर्ट के अनुसार, भारत के कई क्षेत्रों में गरीबी की स्थित अफ्रीका से भी खराब है।
इंडिया को सबसे अधिक प्रधानमंत्री देने वाले राज्य उत्तर प्रदेश में 70 प्रतिशत लोग गरीबी की रेखा से नीचे जीवन-यापन कर रहे हैं। अभी देश के सांसदों को यह भी नहीं पता कि देश में कितने गरीब है।
सवाल तो यह भी उठते हैं कि..........
  1. भारत की तुलना किन अर्थो में ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, जापान, ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी, कनाडा, सिंगापुर और संयुक्त राज्य अमेरीका से की जा सकती है?
  2. क्या इन देशों में भी भारत की तरह गरीबी, अशिक्षा, भुखमरी, बेरोजगारी और कुपोषण है?
  3. जिन देशों के सांसदों का वेतन भारत के सांसदों के वेतन से कई गुना अधिक है, वे देश पिछड़े और अविकसित नहीं हैं।

सदन में तमाम बहसों और हल्ला-हंगामों के बावजूद महंगाई घट नहीं रही है और सांसद अपनी तीन गुना वेतन वृद्धि से संतुष्ट नहीं हैं।
सांसद अक्सर देश में गरीबी रेखा की बात करते हैं, लेकिन खुद को अमीर बनाने का कोई मौका नहीं छोड़ते। महीने का खर्चा प्रति सांसद साढ़े तीन लाख रुपए हो गया है, मगर सांसदों को संतोष नहीं है , उन्हें तो और चाहिए।
सांसदों का यह भी कहना है कि अगर बेहतर सुविधाए मिलेंगी और अधिक वेतन मिलेगा, तो ज्यादा प्रतिभाशाली लोग राजनीति में आएंगे। यह अपने आप में अच्छा-खासा मजाक हैं। सिर्फ लोकसभा के 162 सांसदों पर आपराधिक मुकदमे चल रहे हैं, जिनमें से 76 पर तो हत्या, चोरी और अपहरण जैसे गंभीर मामले चल रहे हैं। इन्हीं आंकड़ों के अनुसार, चौंदहवीं लोकसभा में 128 सांसदों पर आपराधिक मामले थे, जिनमें से 58 पर गंभीर अपराध दर्ज थे। जाहिर है कि प्रतिभाशाली नहीं, आपराधिक लोग संसद में बढ़ रहे हैं और उन्हें फिर भी पगार ज्यादा चाहिए।

pls send ur comment
Anuj Sharma
anujprincek@gmail.com

Thursday, August 19, 2010

बड़े धोखे है इस लाइन (मीडिया) मै.......

पत्रिकारिता के फिल्ड मैं आने वाले नौजवानों को दूर से बेसक यह दुनिया लुभाए लेकिन इस दुनिया का यह कडवा सच है... जी हाँ बड़े धोखे है इस राह मैं

पत्रिकारिता की डगर आसान नहीं रह गई है। कारण साफ है कि ये अब मिशन नहीं रह गया, बल्कि पूंजीवादी बेड़ियों में जकड़ा हुआ है। जो जड़ें पहले समाज में मजबूत हुआ करती थीं, वो जड़ें अब व्यवसायियों के घरों में जज्ब होती जा रही हैं। आज रोज कई युवा पत्रिकारिता ये के फिल्ड मै अपने भविष्य को ते हुए आ रहे हैं, लेकिन यहाँ आने के बाद जब यहाँ के हालत कि मार पड़ती हैं तो अच्छे अच्छे इस फिल्ड को छोड़ना बेहतर समझते हैं. बात मै अपनी ही करता हूँ. जब मैंने पत्रिकारिता का कोर्स करने के दौरान एक अदद नौकरी कि तलाश शुरू कि तो हर और से निराशा ही मिली. अपना रिज्यूम लेकर अखबारों और चैनलों के चक्कर काटने लगा, साथ ही हमारे कुछ साथी भी इसी रहह पर चल रहे थे एक महीना बीता, दो महीने बीते, तीन बीत गए, पर कहीं से कुछ हो ही नहीं पा रहा था। रोजगार न मिलता देख कइयों ने पीआर की ओर रुख किया। कइयों ने एमबीए या अन्य प्रोफेशनल कोर्स करने के बाद भविष्य बनाना बेहतर समझा. कुछ को जाब मिल भी गयी. पर एक बड़ी खेप को नही. सच तो यह था कि हम मैं से बहुतों के पास सिफारिशों कि तोप नही थी. मै थोडा जायदा भाग्यशाली था कि इस तोप के ना होते हुए भी मुझे खड़े होने के लिए एक जगह मिल गयी.

शायद लोग मेरी बातों का विरोध करें, लेकिन जब तक पत्रकारिता में भाई-भतीजावाद और ‘एप्रोच, रिफरेंश व जुगाड़ जैसे शब्द रहेंगे, पत्रकारिता से मोहभंग के शिकार पत्रकारों की संख्या दिनोंदिन बढ़ती जाएगी, क्योंकि आजकल बिना जुगाड़ के पत्रकारिता में शुरुआत भी मुश्किल है। ये दलील हो सकती है कि अगर आपके अंदर प्रतिभा होगी तो लोग उसकी कद्र जरूर करेंगे, पर प्रतिभा का मौका तो तभी मिलेगा, जब एक शुरुआत मिले। जब शुरुआत मुश्किल हो जाती है तो प्रतिभा का आंकलन नामुमकिन है। मंदी के साए में मीडिया इंडस्ट्री इस कदर प्रभावित हुई है कि आज भी कोई अपनी नौकरी को स्थाई रूप से नहीं देखता है। जब कई साल से काम कर रहे मीडियाकर्मियों का हाल बुरा है तो नवोदितों की और भी हालत खराब हो जाती है। यही वजह है कि पत्रकारिता में कदम रखने के बाद वो अपने पैर वापस खींच लेते हैं। ये बहुत बड़ा सच है कि अधिकतर युवा ग्लैमर की चाह में इस ओर निकल तो पड़ते हैं, लेकिन जब संघर्ष की बात आती है तो पसीने छूट जाते हैं। इसलिए इस क्षेत्र को ग्लैमर मानकर आने वाले यहां घुसने की भूल न करें तो ही बेहतर है। भले ही पत्रकारिता को ग्लैमर की हवा लग गई हो, लेकिन इसकी राह न पहले आसान थी और न अब है। जब से पूंजी ने पत्रकारिता में सेंध मारी है, तब से हालत और भी खराब हो गई है।

वैसे कुकुरमुत्ते की तरह उग रहे मीडिया इंस्टीट्यूट भी कम जिम्मेदार नहीं हैं। कुछ संस्थानों को छोड़ दिया जाए तो अधिकतर की औकात अखबार या चैनल में इंटर्नशिप दिलाने भर की नहीं है, लेकिन छात्रों को ऐसा भरमाएंगे कि वो बस फंस जाएगा। लाखों रुपए ऐंठने के बाद भविष्य के कलमवीरों को भाग्य के हवाले कर दिया जाता है। अब आप ही सोचिए, इंटर्नशिप के लिए ये संस्थान कुछ कर नहीं पाते, तो नौकरी क्या खाक दिलाएंगे। कई संस्थान तो ऐसे हैं, जो कहते हैं फलां चैनल हमारा है, लेकिन बात नौकरी की आती है तो एडिटोरियल में अपने टॉपरों का इंटरव्यू तक नहीं करा पाते हैं। इंस्टीट्यूट में वही छात्र, जब प्रोफेशनल लाइफ में घुसता है तो संस्थान के झूठ से उसका मोहभंग हो जाता है और वो पत्रकारिता छोड़ किसी और राह पर निकल पड़ता है। हम सब भी उस मोड़ से गुजर चुके हैं और गुजर रहे हैं, इसलिए उनकी तकलीफ को समझ सकते हैं। पत्रकारिता में करियर शुरू करने वाले हर मित्र से मेरा यही कहना है कि धैर्य की पराकाष्ठा तक धैर्य रखने की क्षमता हो और पत्रकारिता और खबरों के प्रति जुनून के अलावा इस पेशे को लेकर मन में सम्मान हो, तभी उतरें तो कुछ कर पाएंगे।


Anuj sharma

Journalist, The Pioneer'Hindi'

Mob.+91-9897780173


Tuesday, March 23, 2010

उत्तर प्रदेश कि बोर्ड परीक्षा मै होता शिक्षा का बलत्कार.....?????

पापा आपसे में रात को कह रहा था अभी पड़ लो वरना कल सारा समय खोजने में ही निकल जायेगा और हो भी यही रहा है आप रात भर सोते रहे और अब उत्तर नहीं मिल राहें है
"मेरो आज को परचा तो गयो में तो आज के परचा में फेल हो जाउंगो मेरी तो फोज कि नौकरी तो गयी और सब तुम्हरे ना पड्बे के माए हे रहोऊ है "
हाँ कुछ ऐसा ही नज़ारा नज़र आता है हर परीक्षा केंद्र पर......

उत्तर प्रदेश में इस समय बोर्ड के एक्जाम चल रहे हैजहाँ सही मायनो में शिक्षा का बलात्कार हो रहा है परीक्षा के बाद मेरिट में वो बच्चे जगह बनाने वाले है जो असल में अपना नाम भी इंग्लिश में नहीं लिख सकते हैपरीक्षा केंद्र के आस-पास ऐसा नजारा होता है जैसे कोई मेला लगा हो जहाँ हर कोई इस कोशिश में लगा है कि उसके भाई , बेटे , बेटी को कागज पर लिखी हुए चन्द लाएने कैसे पहुचाई जाएयहाँ गौर तलब यह भी है कि शायद उस कागज पर लिखे हुए उत्तरों का पेपर से कोई त्तालुक भी ना हो
उत्तर प्रदेश में परीक्षा के दौरान यह खूब देखने को मिलता के कि जिसे सुबह परीक्षा देनी है वो तो पूरी रात सोता है और जिसे परीक्षा केंद्र के जंगले पर खड़ा होना है वह पूरी रात इस बात दो याद करता नजर आता है कि पिछले कुछ वर्षो में कौन से प्रसन जायदा आये हैजिससे परीक्षा के वक्त उसे उत्तरों को खोजने में जायदा समय ना लगे

इससे ज्यादा कुछ लिखने कि शायद ज़रूरत नजर नहीं आती है...
यहाँ गौरतलब यहं है कि यह सब पुलिश प्रशासन और हर जिले के शिक्षा विभाग की नाक के निचे हो रहा है और उत्तर प्रदेश की सरकार सब कुछ देख कर भी अंधी बनी हुई है और हो भी क्यूँ ना उसे नुमाइनदे जो इसमें सामिल है
आखिर कब तक उत्तर प्रदेश में होता रहेगा शिक्षा का ऐसा ही हाल ????????
अगर आप के पास कोई ज़बाब हो तो मुझे ज़रूर बताइएगा...





Your`s Anuj Sharma
pls feed back on my E-mail id ...
anujprincek@yahoomail.com
anujpndit@rediffmail.com



I M waiting ur responce...
thanks for reading..

उत्तर प्रदेश में शिक्षा का होता बलात्कार..

पापा आपसे में रात को कह रहा था अभी पड़ लो वरना कल सारा समय खोजने में ही निकल जायेगा और हो भी यही रहा है आप रात भर सोते रहे और अब उत्तर नहीं मिल राहें है।
"मेरो आज को परचा तो गयो में तो आज के परचा में फेल हो जाउंगो मेरी तो फोज कि नौकरी तो गयी और ए सब तुम्हरे ना पड्बे के माए हे रहोऊ है "
हाँ कुछ ऐसा ही नज़ारा नज़र आता है हर परीक्षा केंद्र पर......

उत्तर प्रदेश में इस समय बोर्ड के एक्जाम चल रहे है। जहाँ सही मायनो में शिक्षा का बलात्कार हो रहा है परीक्षा के बाद मेरिट में वो बच्चे जगह बनाने वाले है जो असल में अपना नाम भी इंग्लिश में नहीं लिख सकते है। परीक्षा केंद्र के आस-पास ऐसा नजारा होता है जैसे कोई मेला लगा हो जहाँ हर कोई इस कोशिश में लगा है कि उसके भाई , बेटे , बेटी को कागज पर लिखी हुए चन्द लाएने कैसे पहुचाई जाए। यहाँ गौर तलब यह भी है कि शायद उस कागज पर लिखे हुए उत्तरों का पेपर से कोई त्तालुक भी ना हो।
उत्तर प्रदेश में परीक्षा के दौरान यह खूब देखने को मिलता के कि जिसे सुबह परीक्षा देनी है वो तो पूरी रात सोता है और जिसे परीक्षा केंद्र के जंगले पर खड़ा होना है वह पूरी रात इस बात दो याद करता नजर आता है कि पिछले कुछ वर्षो में कौन से प्रसन जायदा आये है। जिससे परीक्षा के वक्त उसे उत्तरों को खोजने में जायदा समय ना लगे ।

इससे ज्यादा कुछ लिखने कि शायद ज़रूरत नजर नहीं आती है...
यहाँ गौरतलब यहं है कि यह सब पुलिश प्रशासन और हर जिले के शिक्षा विभाग की नाक के निचे हो रहा है और उत्तर प्रदेश की सरकार सब कुछ देख कर भी अंधी बनी हुई है और हो भी क्यूँ ना उसे नुमाइनदे जो इसमें सामिल है
आखिर कब तक उत्तर प्रदेश में होता रहेगा शिक्षा का ऐसा ही हाल ????????
अगर आप के पास कोई ज़बाब हो तो मुझे ज़रूर बताइएगा...





Your`s Anuj Sharma"Pndit"
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Sunday, March 14, 2010

"Kuch Panktiyan Dunaiya Ke Sabse Kubsurut Mahila Ke Bare Me""



नमस्कार दोस्तों आज बहुत दिनों बाद कुछ किया
दरअसल इसे लिखने में समय लगा और कुछ जीवन के व्यस्तताओं में समय निकल पाना मुस्किल रहा उसके लिए छमा करना
आपका अपना - :- अनुज शर्मा "pndit"

अगर आपको इसमें से कोई पंक्ति आपके मन को छु जाये तो ज़रूर बताना । मुझे आपके अनुभवो का इंतजार रहेगा.....

anujprincek@gmail.com

anujprincek@yahoo.com
anujprincek@orkut.com
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कविता के सभी अधिकार सुरछित हैं... अनुज शर्मा "Pndit"